उनके लक्ष्यों, बलिदान और आदर्शों को नमन।
स्वतन्त्रता सेनानी देवी दयाल का जन्म वर्ष 1909 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के रेवाड़ी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम मनई था। साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद उनके हृदय में देशभक्ति की गहरी भावना थी। युवावस्था में उन्होंने अंग्रेजी शासन की अत्याचारपूर्ण नीतियों को नजदीक से देखा, जिससे उनके मन में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित हो उठी और वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।
1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान उन्हें 6 महीने के कठोर कारावास और 25 रुपये के जुर्माने की सजा दी गई। इसके बाद उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की, जिसके चलते उन्हें भारत रक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से रिहा होने के बाद भी देवी दयाल भूमिगत रहकर स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता करते रहे और लोगों को आजादी की लड़ाई में योगदान देने के लिए प्रेरित करते रहे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी देवी दयाल का जीवन समाजसेवा को समर्पित रहा। वे स्कूलों में इंटरलॉक टाइल्स लगवाने, स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर मिठाई बांटने जैसे कार्य स्वयं के खर्च पर करते थे। वर्ष 1984 में उन्होंने अपने गाँव में “श्री देवी दयाल स्वतन्त्रता संग्रामी सेनानी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय” का शिलान्यास किया, जो आज भी गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रहा है।
15 अगस्त 1972 को स्वतंत्रता संग्राम के 25वें वर्ष पर उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्र पत्र भेंट कर सम्मानित किया। देश और समाज के प्रति समर्पण से भरे इस महान सेनानी का निधन वर्ष 2000 में हुआ। देवी दयाल का जीवन राष्ट्रभक्ति, त्याग और सेवा का प्रेरणास्रोत है।
ग्राम रवाईपुर, जन्म 1900 ई., आज़ादी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी; कई बार कारावास।
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